वनों के रक्षकों की अमर गाथा का दिन, गुमनाम नायकों का सम्मान – Param Satya – Parwatiya Sansar

वनों के रक्षकों की अमर गाथा का दिन, गुमनाम नायकों का सम्मान – Param Satya

उत्तराखंड में वन शहीद दिवस पर एक बार फिर कर्मियों ने अपनी उन मांगों को लेकर बात रखी है, जो लंबे समय से लंबित हैं. इस दौरान विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने शहीद स्थल पर पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी.

उत्तराखंड में वन शहीद दिवस पर विभाग के अफसर और कर्मचारी शहीद स्मारक पहुंचे. इस दौरान वन विभाग के शहीद हुए कर्मियों को श्रद्धांजलि दी गई. मौके पर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ से लेकर तमाम अफसर और कर्मी मौजूद रहे.

इस दौरान कर्मचारियों ने श्रद्धांजलि देते हुए अपनी उन मांगों को भी रख दिया, जो पिछले लंबे समय से पूरी नहीं हो पा रही हैं. उत्तराखंड वन विभाग में प्रमुख वन संरक्षक हाफ समीर सिन्हा कहते हैं कि राज्य में ही नहीं बल्कि पूरे देश में वन विभाग के अंतर्गत काम करने वाले कर्मियों के ड्यूटी के दौरान शहीद होने की घटनाएं सामने आती है, जिन्हें कम करना बेहद बड़ी चुनौती होता है. ऐसी स्थिति में वन विभाग एक परिवार की तरह ऐसे शहीदों के साथ है.

वन विभाग खास बात यह है कि प्रदेश में वन विभाग वन शहीद दिवस मना रहा है और वन विभाग के कर्मियों को राज्य सरकार द्वारा अब तक शहीद का दर्जा ही नहीं दिया जा रहा. बड़ी बात यह है कि वन विभाग के कर्मी काफी समय से शहीद का दर्जा मिलने की मांग भी कर रहे हैं, जो अब तक पूरी नहीं हो पाई.

इतना ही नहीं शहीदों को 15 लाख रुपए दिए जाने की भी कर्मचारी का मांग करते रहे हैं, लेकिन इस पर भी केवल घोषणाओं तक ही बात पहुंच चुकी है. इस मामले मे सहायक वन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष स्वरूप चंद रमोला के अनुसार आज वन शहीद दिवस को सभी वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी मना रहे हैं, और शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी जा रही है, लेकिन आज बात वन विभाग के कर्मचारियों को शहीद का दर्जा दिलाने की है।. स्वरूप चंद्र रमोला कहते हैं कि वह विभाग के उच्च अधिकारियों से मांग करते हैं कि शहीदों के लिए कर्मचारी जिन दो मांगों को कर रहे हैं, उन्हें पूरा किया जाए और शहीदों के परिजनों को 15 लाख रुपए की राशि देने के अलावा शाहिद का दर्जा देने का भी काम किया जाए.

कॉर्बेट पार्क प्रशासन द्वारा धनगढ़ी इंटरप्रिटेशन सेंटर में एक स्मारक स्थल पर वन विभागों के शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. इस स्मारक पर उन सभी वीर वनकर्मियों के नाम खुदे हैं, जिन्होंने 1982 से लेकर 2025 तक शिकारियों, अवैध तस्करों और जंगली जानवरों के हमलों में अपनी जान गंवाई. पिछले चार दशकों में इस क्षेत्र में 35 से अधिक वनकर्मी शहीद हुए है.

वन्यजीवों की सुरक्षा में लगे इन वीरों के संघर्ष और बलिदान की कहानियां इस स्मारक पर अंकित हैं. कॉर्बेट पार्क के डायरेक्टर डॉ साकेत बडोला ने बताया कि जंगल सिर्फ पेड़ों और जीव-जंतुओं की वजह से नहीं, बल्कि इन वीरों के अदम्य साहस और बलिदान के कारण भी जीवित है, उनके बिना आज के जंगल की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस दिवस का इतिहास 1730 में राजस्थान के खेजड़ली नरसंहार से जुड़ा है. उस समय अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 ग्रामीणों ने खेजड़ी वृक्षों से लिपटकर अपना बलिदान दिया था, ताकि उन्हें वनों की कटाई से बचाया जा सके. यह अद्वितीय बलिदान पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गया और बाद में 1970 के दशक के चिपको आंदोलन को प्रेरित किया. इसी साहस और समर्पण को मान्यता देते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वर्ष 2013 में हर वर्ष 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में घोषित किया.





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